आरती संग्रह
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1 आरती का सम्पूर्ण मार्गदर्शन ›
आरती का सम्पूर्ण मार्गदर्शन: अर्थ, महत्व, विधि और पावन श्लोक
1. आरती शब्दार्थ (Aarti Word Meaning)
‘आरती’ शब्द संस्कृत के ‘आरात्रिक’, ‘आर्तिका’ और ‘नीराजन’ शब्दों से निकला है। इसका अर्थ होता है ‘अंधकार का निवारण’, ‘दीप द्वारा प्रकाश फैलाना’ और ‘अरिष्ट निवारण’। पूजा के अंत में दीप या अन्य पवित्र वस्तुओं के साथ किया गया क्रिया-कलाप ही आरती कहलाता है।
संस्कृत श्लोक:
मन्त्रेण क्रियायां यत्र कृतः पूजनं हि।
सर्व सम्पूर्णतायां कुर्वे नीराजनं शिवे॥
संदर्भ: हरिपुराण, पूजा-विधान
भावार्थ: जब पूजा की सभी आवश्यक विधियां मंत्रों द्वारा सम्पन्न हो जाएं, तब उसे पूर्णता प्रदान करने हेतु अंत में नीराजन (आरती) करनी चाहिए। इस प्रक्रिया से पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है।
2. आरती का अर्थ और उद्देश्य (Meaning and Purpose of Aarti)
आरती केवल दीप जलाकर प्रभु को अर्पित करना ही नहीं है, बल्कि यह भक्त का भगवान के प्रति भव्य समर्पण, श्रद्धा और आस्था प्रकट करने का माध्यम है। आरती करने से भगवान की मूर्ति या प्रतिमा चारों ओर से प्रकाशमान होती है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सभी कष्ट समाप्त होते हैं।
संस्कृत श्लोक:
नीराजनं च: पृथक् देवदेवस्य चक्रिणः।
सम्यम्नि विषयः स्वायत्ते तु परमं पदम्॥
संदर्भ: भक्तिमाला, विष्णुधर्मोत्तर
भावार्थ: आरती करने वाला व्यक्ति विशेष पुण्य प्राप्त करता है तथा भगवान के परम पद का अधिकारी बनता है। नीराजन से प्रभु की विशेष कृपा मिलती है।
3. आरती का महत्व (Significance of Aarti)
आरती पूजन की परिणति है, इसके बिना पूजा अपूर्ण मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, घी से दीपक जलाकर और कपूर, पुष्प, चंदन आदि वस्तुओं से आरती करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे भगवान का आशीर्वाद और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा आरती से वातावरण शुद्ध होता है और भक्तों का मन भगवद्भक्ति से पूर्ण होता है।
संस्कृत श्लोक:
तत्र मूलमन्त्रेण दन्त्रा पुष्पाज्जलिन्यम्।
मात्र-नीरंजनं कुर्वीतमधयाज्ययचवः॥
प्रलम्बेत् तद्वै च कर्पूरं धूतं वा॥
संदर्भ: पूजा संहिता, तंत्रसार
भावार्थ: आरती के लिए सामान्यत: पंचवस्तु – चंदन, पुष्प, अक्षत, दीपक व कपूर का उपयोग होता है। कभी-कभी केवल कपूर के माध्यम से भी आरती की जाती है।
4. आरती की विधि (Procedure for Aarti)
• पूजन के बाद दीपक को स्वच्छ स्थान पर रखें और उसमें शुद्ध घी या तेल रखें।
• पंचवस्तु (कुमकुम, कपूर, अक्षत, चंदन, पुष्प) के साथ दीपक में प्रज्वलन करें।
• आरती के क्रम में दीपक को प्रथम चरणों के पास, फिर नाभि के पास, फिर मुख के पास और फिर सात बार पूरी देह पर घुमाएं।
• आरती के दौरान भक्त भगवान के गुणगान, स्तुति, और वंदना करता है।
• अंत में शंख बजाकर चरण स्पर्श करें और भगवान का आशीर्वाद लें।
संस्कृत श्लोक:
पञ्च नीराजनं कुर्वीत प्रथमं दीपमालिका।
द्वितीयं सोदकाञ्जनं तृतीयं क्षीतलामसम्।
चतुर्थं धूपसंयुक्तं पञ्चमं प्रणिधानतः॥
संदर्भ: पूजा-कल्प, नारद-संहिता
भावार्थ: आरती के पाँच मुख्य प्रकार हैं — दीपमाल से, सुगंधित जल के छींटों से, चंदन लेप आदि से, धूप अथवा धुएं से तथा पवित्र भाव से। इनका प्रयोग परिस्थिति और विधान अनुसार होता है।
5. आरती के प्रकार और उनकी विशेषताएँ (Types and Features of Aarti)
आरती सामान्यतः पाँच प्रकार की होती है, जिन्हें पंचमूल या पंचहीथि भी कहा जाता है। इनमें दीपक, जल, पुष्प, धूप या कपूर, और प्रणिधान (भाव-सुमिरन) शामिल हैं। कभी-कभी सात या अधिक बातियों वाले दीपक से भी आरती की जाती है।
संस्कृत श्लोक:
वर्तिकायुक्त दीपं वा द्विपञ्चसप्तधा विभुः।
कुम्कुमादि समप्रदीपेन शुद्धध्येयादिवाचकः॥
संदर्भ: विष्णुधर्म, बोध्यशास्त्र
भावार्थ: भगवान की आरती करते समय एक से सात दीपक (या अधिक) उपयोग किए जा सकते हैं तथा इसमें कुमकुम, कपूर, चंदन इत्यादि वस्तुएं भी सम्मिलित की जा सकती हैं।
6. आरती में प्रयुक्त वस्तुएँ (Items Used in Aarti)
आरती के लिए मुख्य वस्तुएं हैं – दीपक, कपूर, अक्षत, पुष्प, चंदन, धूप, जल आदि। ये सभी धार्मिक अर्थों से महत्वपूर्ण हैं और इन्हें पंचहीन प्रतीक माना जाता है।
संस्कृत श्लोक:
आरात्रं द्विपञ्चसप्त च विंश
सम्वेध् चाण्डाले च सम्वारा।
नाराचितं भजञ्चस्य कृपया॥
संदर्भ: मंत्रसंग्रह, विष्णु-पूजन विधि
भावार्थ: आरती हेतु दीपकों की संख्या नियम एवं अवसर अनुसार दो, पाँच, सात या बीस तक हो सकती है; सभी के मूल में भक्तिभाव, समर्पण और प्रभु का मंगल ही सर्वोपरि है।
7. आरती के प्रभाव और लाभ (Effects and Benefits of Aarti)
आरती का प्रकाश विपत्तियों को दूर करता है, मन को शांति और श्रद्धा की भावना से भरता है। आरती के दौरान
भगवान के गुणों का स्मरण और गुणगान होता है, जिससे भक्त का हृदय भक्तिभाव से पूर्ण होता है और आंतरिक शुद्धि होती है।
संदर्भ: विविध पूजा-विधान तथा वैदिक ग्रंथ।
2 श्री गणेश जी की आरती ›
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ x2
एकदन्त दयावन्त, चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी ॥ x2
(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी॥)
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
(हार चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।)
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा ॥ x2
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ x2
अँधे को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ x2
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ x2
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥ x2
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ x2
3 श्री हरि विष्णु जी की आरती ›
श्री हरि विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश हरे
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ ॐ जय जगदीश हरे
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ ॐ जय जगदीश हरे
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय जगदीश हरे
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश हरे
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे
दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ ॐ जय जगदीश हरे
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश हरे
4 श्री सत्यानारयण जी की आरती ›
श्री सत्यानारयण जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी जय लक्ष्मीरमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा ॥
रत्नजडित सिंहासन, अद्भुत छवि राजें ।
नारद करत निरतंर, घंटा ध्वनी बाजें ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी....
प्रकट भयें कलिकारण, द्विज को दरस दियो ।
बूढों ब्राम्हण बनके, कंचन महल कियों ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....
दुर्बल भील कठार, जिन पर कृपा करी ।
च्रंदचूड एक राजा तिनकी विपत्ति हरी ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....
वैश्य मनोरथ पायों, श्रद्धा तज दिन्ही ।
सो फल भोग्यों प्रभूजी, फेर स्तुति किन्ही ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....
भाव भक्ति के कारन, छिन छिन रुप धरें ।
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनके काज सरें ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....
ग्वाल बाल संग राजा, वन में भक्ति करि ।
मनवांचित फल दिन्हो, दीन दयालु हरि ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....
चढत प्रसाद सवायों, दली फल मेवा ।
धूप दीप तुलसी से, राजी सत्य देवा ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
ऋद्धि सिद्धी सुख संपत्ति सहज रुप पावे ॥
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी जय लक्ष्मीरमणा।
सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा ॥
5 श्री रामचन्द्र जी की आरती ›
श्री रामचन्द्र जी की आरती
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
श्री राम, श्री राम....
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनीलनीरद सुन्दरं ।
पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
श्री राम, श्री राम....
भजु दीनबंधु दिनेश दानवदैत्यवंशनिकंदनं ।
रघुनंद आंनदकंद कोशलचंद दशरथनंदनं ।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
श्री राम, श्री राम...
सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं ।
आजानु भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ।।
भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
इति वदित तुलसीदास शंकरशेषमुनिमनरंजनं ।
मम ह्रदयकंजनिवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं ।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ।।
श्री राम, श्री राम...
6 श्री हनुमान जी की आरती ›
श्री हनुमान जी की आरती
आरती कीजे हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे । रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये । लंका जाये सिया सुधी लाये ॥
लंका सी कोट संमदर सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे । सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे । आनि संजीवन प्राण उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावन की भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुर दल मारे । दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई । आरती करत अंजनी माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गाये । बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥
लंका विध्वंस किये रघुराई । तुलसीदास स्वामी कीर्ती गाई ॥
आरती कीजे हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
7 श्री शिव जी की आरती ›
श्री शिव जी की आरती
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं ।
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा ।
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे ।
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें ।
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी ।
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें ।
सनकादिक, ब्रम्हादिक, भूतादिक संगें ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
कर के मध्य कमड़ंल चक्र, त्रिशूल धरता ।
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी ।
नित उठी भोग लगावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥
ॐ जय शिव ओंकारा.....
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा।
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
8 श्री कृष्ण जी की आरती ›
श्री कृष्ण जी की आरती
ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे
भक्तन के दुख टारे, पल में दूर करे ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
परमानन्द मुरारी, मोहन गिरधारी ।
जय रस रास बिहारी, जय जय गिरधारी ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
कर कंचन, कटि कंचन, श्रुति कुंड़ल माला ।
मोर मुकुट पीताम्बर, सोहे बनमाला ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
दीन सुदामा तारे, दरिद्र दुख टारे ।
जग के फ़ंद छुड़ाए, भव सागर तारे ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
हिरण्यकश्यप संहारे, नरहरि रुप धरे ।
पाहन से प्रभु प्रगटे, जन के बीच पड़े ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
केशी कंस विदारे, नर कूबेर तारे ।
दामोदर छवि सुन्दर, भगतन रखवारे ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
काली नाग नथैया, नटवर छवि सोहे ।
फ़न फ़न चढ़त ही नागन, नागन मन मोहे ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
राज्य विभिषण थापे, सीता शोक हरे ।
द्रुपद सुता पत राखी, करुणा लाज भरे ।
जय जय श्री कृष्ण हरे....
ॐ जय श्री कृष्ण हरे ।
9 श्री कुंज बिहारी की आरती ›
श्री कुंज बिहारी की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
10 श्री चित्रगुप्त जी की आरती ›
श्री चित्रगुप्त जी की आरती
ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्त जनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तन के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरति, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अङ्ग साजै॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
कष्ट निवारण, दुष्ट संहारण, प्रभु अन्तर्यामी।
सृष्टि संहारण, जन दु:ख हारण, प्रकट हुये स्वामी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
कलम, दवात, शङ्ख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
सिंहासन का कार्य सम्भाला, ब्रह्मा हर्षाये।
तैंतीस कोटि देवता, चरणन में धाये॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
नृपति सौदास, भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेगि विलम्ब न लायो, इच्छित फल दीन्हा॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
न्यायाधीश बैकुण्ठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
हम हैं शरण तिहारी, आस न दूजी करते॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥
11 श्री शनि देव जी की आरती ›
श्री शनि देव जी की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय.॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय.॥
किरीट मुकुट शीश रजित दीपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय.॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय.॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय.॥
12 श्री बृहस्पति देव की आरती ›
श्री बृहस्पति देव की आरती
जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।
छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥
13 श्री सूर्य देव की आरती ›
श्री सूर्य देव की आरती
ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्र स्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान।।
सारथी अरूण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी।
तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटी किरण पसारे।
तुम हो देव महान।। ऊँ जय सूर्य ……
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते।
सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा जागता तब जग सारा।
करे सब तब गुणगान ।। ऊँ जय सूर्य ……
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते।
गोधन तब घर आते।।
गोधुली बेला में हर घर हर आंगन में।
हो तव महिमा गान ।। ऊँ जय सूर्य ……
देव दनुज नर नारी ऋषी मुनी वर भजते।
आदित्य हृदय जपते।।
स्त्रोत ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी।
दे नव जीवनदान ।। ऊँ जय सूर्य ……
तुम हो त्रिकाल रचियता, तुम जग के आधार।
महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते।
बल बृद्धि और ज्ञान ।। ऊँ जय सूर्य ……
भूचर जल चर खेचर, सब के हो प्राण तुम्हीं।
सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद पुराण बखाने धर्म सभी तुम्हें माने।
तुम ही सर्व शक्तिमान ।। ऊँ जय सूर्य ……
पूजन करती दिशाएं पूजे दश दिक्पाल।
तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी।
शुभकारी अंशमान ।। ऊँ जय सूर्य ……
ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत के नेत्र रूवरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान।।
14 श्री दुर्गा जी की आरती ›
श्री दुर्गा जी की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निस दिन ध्यावत
मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी ।। जय अम्बे गौरी ॥
माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को । मैया टीको मृगमद को
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको।। जय अम्बे गौरी ॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे। मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे।। जय अम्बे गौरी ॥
केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी। मैया खड्ग कृपाण धारी
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी।। जय अम्बे गौरी ॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती। मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति।। जय अम्बे गौरी ॥
शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती। मैया महिषासुर घाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती।। जय अम्बे गौरी ॥
चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे। मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे।। जय अम्बे गौरी ॥
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी। मैया तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी।। जय अम्बे गौरी ॥
चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों। मैया नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू।। जय अम्बे गौरी ॥
तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता। मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता।। जय अम्बे गौरी ॥
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी। मैया वर मुद्रा धारी
मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी।। जय अम्बे गौरी ॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती। मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती।। बोलो जय अम्बे गौरी ॥
माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे। मैया जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे।। जय अम्बे गौरी ॥
देवी वन्दना
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
15 श्री पार्वती जी की आरती ›
श्री पार्वती जी की आरती
जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्मा सनातन देवी शुभफल की दाता ।।
अरिकुलापदम विनाशिनी जय सेवक त्राता,
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुणगाता ।।
सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा ।।
सतयुग रूपशील अतिसुन्दर नाम सती कहलाता,
हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता ।।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता,
सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा ।।
सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता,
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता ।।
देवन अरज करत तब चित को लाता,
गावन दे दे ताली मन में रंगराता ।।
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता ,
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता ।।
16 श्री काली माता की आरती ›
श्री काली माता की आरती
मंगल की सेवा सुन मेरी देवा, हाथ जोड तेरे द्वार खडे।
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेट धरेसुन।।1।।
जगदम्बे न कर विलम्बे, संतन के भडांर भरे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।।2।।
बुद्धि विधाता तू जग माता, मेरा कारज सिद्व रे।
चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पडे।।3।।
जब जब भीड पडी भक्तन पर, तब तब आप सहाय करे।
गुरु के वार सकल जग मोहयो, तरूणी रूप अनूप धरे माता।।4।।
होकर पुत्र खिलावे, कही भार्या भोग करे शुकर सुखदाई सदा।
सहाई संत खडे जयकार करे ।।5।।
ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये भेट तेरे द्वार खडे अटल सिहांसन।
बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरे वार शनिचर।।6।।
कुकम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे ।
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्त बीज को भस्म करे।।7।।
शुम्भ निशुम्भ को क्षण मे मारे, महिषासुर को पकड दले ।
आदित वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे ।।8।।
कुपित होकर दनव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे।
जब तुम देखी दया रूप हो, पल मे सकंट दूर करे।।9।।
सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे ।
सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे।।10
सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भवन मे राज्य करे।
दर्शन पावे मंगल गावे, सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ।।11।।
ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरी ध्यान धरे।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर डुलाय रहे।।12।।
जय जननी जय मातु भवानी, अटल भवन मे राज्य करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, मैया जै काली कल्याण करे।।13।।
17 श्री सरस्वती जी की आरती ›
श्री सरस्वती जी की आरती
श्लोक-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि र्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
जय सरस्वती माता, जय जय हे सरस्वती माता ।
दगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय सरस्वती माता
चंद्रवदनि पदमासिनी, घुति मंगलकारी ।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ जय सरस्वती माता
बायेँ कर में वीणा, दायें कर में माला ।
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला ॥ जय सरस्वती माता
देवी शरण जो आयें, उनका उद्धार किया ।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ जय सरस्वती माता
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो ।
मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय सरस्वती माता
धुप, दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो ।
ज्ञानचक्षु दे माता, भव से उद्धार करो ॥ जय सरस्वती माता
माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें ।
हितकारी, सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥ जय सरस्वती माता
सरस्वती माता, जय जय हे सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय सरस्वती माता
18 श्री लक्ष्मी जी की आरती ›
श्री लक्ष्मी जी की आरती
श्लोक-
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी ।
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम जग की माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता ।
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद् गुण आता।
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाा, पाप उतर जाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
स्थिर चर जगत बचावै, कर्म प्रेर ल्याता ।
रामप्रताप मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...
19 श्री सीता जी की आरती ›
श्री सीता जी की आरती
सीता विराजित मिथिलाधाम सब मिल कर करें आरती।
संग सुशोभित लछुमन-राम सब मिल कर करें आरती।।
विपदा विनाशिनि सुखदा चराचर, सीता धिया बनि आयीं सुनयना घर।
मिथिला के महिमा महान...सब मिल कर करें आरती।। सीता विराजित ...
सीता सर्वेश्वरि ममता सरोवर, बायाँ कमल कर दायाँ अभय वर।
सौम्या सकल गुणधाम.....सब मिल कर करें आरती।। सीता विराजित ...
रामप्रिया सर्वमंगल दायिनि, सीता सकल जगती दुःखहारिणि।
करें सबका कल्याण...सब मिल कर करें आरती।। सीता विराजित ...
सीता-राम की जोड़ी अतिभावन, नैहर सासुर किया पावन
सेवक हैं हनुमान...सब मिल कर करें आरती।। सीता विराजित ...
ममतामयी माता सीता पुनीता, संतन हेतु सीता सदा सुनीता
धरणी-सुता सब ठाम...सब मिल कर करें आरती ।। सीता विराजित ...
शुक्ल नवमी तिथि वैशाख मासे, ’चंद्रमणि’ सीता उत्सव हुलासे
पाय सकल सुखधाम...सब मिल कर करें आरती।।
सीता विराजित मिथिलाधाम सब मिल कर करें आरती।।।
20 श्री राधा जी की आरती ›
श्री राधा जी की आरती
आरती श्री वृषभानुसुता की ।
मंजु मूर्ति मोहन ममताकी ।। टेक ।।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,
विमल विवेकविराग विकासिनि ।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,
सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ।।
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि,
मधुर मनोहर मूरती सोहनि ।
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि,
प्रिय अति सदा सखी ललिताकी ।।
संतत सेव्य सत मुनि जनकी,
आकर अमित दिव्यगुन गनकी,
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी,
अति अमूल्य सम्पति समता की ।।
कृष्णात्मिका, कृषण सहचारिणि,
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि ।
जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि,
आदि अनादिशक्ति विभुताकी ।।
21 श्री संतोषी माता आरती ›
श्री संतोषी माता आरती
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥
जय सुंदर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥
जय गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे ।
मंद हँसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥
जय स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥
जय गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥
जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥
जय मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥
जय भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥
जय दुखी, दरिद्री, रोगी, संकटमुक्त किए ।
बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥
जय ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥
जय शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥
जय संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे ।
ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥
22 श्री गायत्री माता की आरती ›
श्री गायत्री माता की आरती)
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री।
दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री॥१॥
ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे।
भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥२॥
भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥३॥
कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥४॥
ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे॥५॥
स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥६॥
जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे॥७॥
स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥८॥
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥९॥
तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता।
सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता॥१०॥
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥
23 श्री अन्नपूर्णा जी की आरती ›
श्री अन्नपूर्णा जी की आरती
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम...
जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम।
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम॥ बारम्बार...
प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम।
सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम॥ बारम्बार...
चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम।
चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम॥ बारम्बार...
देवि देव! दयनीय दशा में दया-दया तब नाम।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल शरण रूप तब धाम॥ बारम्बार...
श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या श्री क्लीं कमला काम।
कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम॥ बारम्बार...
24 श्री वैष्णो देवी की आरती ›
श्री वैष्णो देवी की आरतीश्री वैष्णो देवी की आरती
जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता।
हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता॥
शीश पे छत्र विराजे, मूरतिया प्यारी।
गंगा बहती चरनन, ज्योति जगे न्यारी॥
ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे, शंकर ध्यान धरे।
सेवक चंवर डुलावत, नारद नृत्य करे॥
सुन्दर गुफा तुम्हारी, मन को अति भावे।
बार-बार देखन को, ऐ माँ मन चावे॥
भवन पे झण्डे झूलें, घंटा ध्वनि बाजे।
ऊँचा पर्वत तेरा, माता प्रिय लागे॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट पुष्प मेवा।
दास खड़े चरणों में, दर्शन दो देवा॥
जो जन निश्चय करके, द्वार तेरे आवे।
उसकी इच्छा पूरण, माता हो जावे॥
इतनी स्तुति निश-दिन, जो नर भी गावे।
कहते सेवक ध्यानू, सुख सम्पत्ति पावे॥
25 श्री तुलसी जी की आरती ›
श्री तुलसी जी की आरती
जय जय तुलसी माता, सबकी सुखदाता वर माता।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर,
रुज से रक्षा करके भव त्राता।
जय जय तुलसी माता।
बहु पुत्री है श्यामा, सूर वल्ली है ग्राम्या,
विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता।
जय जय तुलसी माता।
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित,
पतित जनों की तारिणि, तुम हो विख्याता।
जय जय तुलसी माता।
लेकर जन्म बिजन में आई दिव्य भवन में,
मानव लोक तुम्हीं से सुख सम्पत्ति पाता।
जय जय तुलसी माता।
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वर्ण सुकुमारी,
प्रेम अजब है श्री हरि का तुम से नाता।
जय जय तुलसी माता।
26 श्री गंगा जी की आरती ›
श्री गंगा जी की आरती
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
चन्द्र-सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
आरती मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
27 श्री ललिता माता की आरती ›
श्री ललिता माता की आरती
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी।
राजेश्वरी जय नमो नमः॥
करुणामयी सकल अघ हारिणी।
अमृत वर्षिणी नमो नमः॥
जय शरणं वरणं नमो नमः।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी॥
अशुभ विनाशिनी, सब सुख दायिनी।
खल-दल नाशिनी नमो नमः॥
भण्डासुर वधकारिणी जय माँ।
करुणा कलिते नमो नम:॥
जय शरणं वरणं नमो नमः।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी॥
भव भय हारिणी, कष्ट निवारिणी।
शरण गति दो नमो नमः॥
शिव भामिनी साधक मन हारिणी।
आदि शक्ति जय नमो नमः॥
जय शरणं वरणं नमो नमः।
जय त्रिपुर सुन्दरी नमो नमः॥
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी।
राजेश्वरी जय नमो नमः॥
28 श्री एकादशी माता की आरती ›
श्री एकादशी माता की आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी...॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी...॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी...॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी...॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी...॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी...॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी...॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी...॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी...॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी...॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी...॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी...॥
29 श्री रामायण जी की आरती ›
श्री रामायण जी की आरती
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥
गावत ब्राह्मादिक मुनि नारद। बालमीक विज्ञान विशारद।
शुक सनकादि शेष अरु शारद। बरनि पवनसुत कीरति नीकी॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥
गावत वेद पुरान अष्टदस। छओं शास्त्र सब ग्रन्थन को रस।
मुनि-मन धन सन्तन को सरबस। सार अंश सम्मत सबही की॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥
गावत सन्तत शम्भू भवानी। अरु घट सम्भव मुनि विज्ञानी।
व्यास आदि कविबर्ज बखानी। कागभुषुण्डि गरुड़ के ही की॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥
कलिमल हरनि विषय रस फीकी। सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की।
दलन रोग भव मूरि अमी की। तात मात सब विधि तुलसी की॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥
